कर्नाटक चुनाव में मुद्दे, जातिय अंकगणित और कैसा रहा प्रचार

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10 मई को कर्नाटक चुनाव के लिए वोट डाले जा चूके हैं. करीब एक महीने तक चले चुनावी प्रचार के दौर में काफी उतार चढ़ाव देखने को मिले. जहां भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी देर से चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं कांग्रेस और जेडीएस ने भी इस चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी.

कर्नाटक चुनाव में जहां भाजपा की ओर से राष्ट्रीय मुद्दों के आसरे चुनाव लड़ने की कोशिश की तो वहीं कांग्रेस और जेडीएस ने स्थानीय मुद्दों के भरोसे ही पूरे चुनाव में डटे रहे. कर्नाटक में 1985 के बाद से किसी भी पार्टी की सरकार दूसरी बार सत्ता में नहीं आ पाई है.

इंस्टिट्यूट फॉर गवर्नेंस, पॉलिसीज & पॉलिटिक्स (IGPP) द्वारा 27 अप्रैल को नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित की गई राउंड टेबल चर्चा में जिसमें देश के बड़े राजनीतिक विशलेषकों एवं शोधार्थियों ने हिस्सा लिया था में ये निष्कर्ष निकलकर सामने आया की इस बार कर्नाटक में कांग्रेस की स्थिति बेहतर है.
मुद्दे जिनके आसरे बिछाई गई सियासी बिसात

कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में देश के उत्तरी या फिर पूर्वी पट्टी के राज्यों के तरह हिजाब, अजान, हलाल जैसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण वाले मुद्दे न होकर विकास से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा जोर दिया गया. कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस जहां भाजपा पर 40 फीसदी कमीशन और अपनी पांच गांरटियों के आसरे चुनाव में उतरी थी तो वहीं भाजपा ने बजरंगबली और पिछले सालों में किये गए काम को गिनाया.

कर्नाटक के चुनाव में एक जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि कर्नाटक एकमात्र ऐसा चुनावी राज्य है, जहां कांग्रेस ने नैरेटिव को ही बदल दिया है. 2011-12 के बाद से अगर किसी भी चुनाव का जिक्र करें तो आमतौर पर ज्यादातर चुनावी राज्यों में भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस, भाजपा के निशाने पर रहती है, लेकिन कर्नाटक में मामला एकदम इसके उलट है.

कर्नाटक में भाजपा ने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न विकास परियोजनाओं और सामाजिक कल्याण की पहलों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करती है. इसके साथ ही मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे को भी भुनाने का प्रयास कर रही है. इसके साथ ही भाजपा कांग्रेस और जेडीएस पर वंशवाद की राजनीति को लेकर निशाना साधा.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यह संदेश देने की कोशिश की कि लिंगायत मतदाताओं के साथ धोखा हुआ है, क्योंकि भाजपा ने लिंगायतों के बड़े नेता माने जाने वाले बी.एस. येदियुरप्पा को हाशिये पर धकेल दिया है इसके साथ ही इसी समुदाय के दूसरे नेता जगदीश शेट्टार जो कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं को टिकट देने से इंकार कर दिया. शेट्टार को कांग्रेस ने तुरंत अपने पाले मे लिया ओर उनको पार्टी का टिकट भी थमा दिया. पिछले 4 साल से सत्ता संभाल रही भाजपा के दो बड़े लिंगायत नेताओं के प्रति सहानुभूति जताकर कांग्रेस ने लिंगायत मतदाताओं को रिझाने की भ्रषक कोशिश की. ‘लिंगायत’ परंपरागत रूप से भाजपा के साथ ही जुड़े रहे हैं चाहे वो जो भी चुनाव हो लिंगायतों ने भाजपा का भरपूर साथ दिया है.

भाजपा ने भी दल के प्रति चल रही नाराजगी को दूर करने के लिए परंपरागत रूप से पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा के जनता दल सेक्युलर (JDS) या फिर कांग्रेस के साथ जुड़े रहे दक्षिणी कर्नाटक के वोक्कलिगा समुदाय के मतदाताओं को अपनी ओर करने के लिए उन्हें आरक्षण दे दिया, इसके साथ ही चुनाव से पहले वोक्कलिगा शासक केम्पेगौड़ा की विशाल प्रतिमाएं बनवाईं गई जिसमें से एक का उद्घाटन तो स्वंय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया. भाजपा ने वोक्कलिगा समुदाय के सामने यह यह भी कहना शुरू किया कि 17वीं शताब्दी में टीपू सुल्तान को वोक्कलिगाओं ने ही मारा था.

आरक्षण को लेकर भी सवाल

1994 में एचडी देवगौड़ा सरकार द्वारा मुस्लिमों को पहली बार दिए गए आरक्षण को 27 मार्च 2023 को सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा खत्म कर इसे राज्य के दो प्रमुख समुदायों (वोक्कालिगा और लिंगायत) के मौजूदा आरक्षण में जोड़ने के फैसला लिया है जिसको लेकर काफी शोर-शराबा हो रहा है. कर्नाटक में आरक्षण के मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट कर रही है जिसने 9 मई को कर्नाटक सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है. इसके अलावा कर्नाटक मंत्रिमंडल ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) श्रेणी के तहत लाने का फैसला किया.

जातियों की स्थिति

भारत की राजनीति की जो सबसे बड़ी विशेषता है वो है जातियो का अंकगणित. देश के अन्य राज्यों की तरह ही कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी जाति एक बड़ा रोल अदा कर रही है. कर्नाटक की राजनीति में सभी दलों ने एक-एक सीट को जातियों के हिसाब से देखा.

अगर हम प्रत्याशियों को देखें तो कांग्रेस, भाजपा और जेडीएस की ओर से उतारे गए प्रत्याशियों में से लगभग 45 फीसदी उम्मीदवार लिंगायत या फिर वोक्कलिगा समुदाय से आते है. वैसे तो कर्नाटक में जातियों को लेकर कोई सरकारी डेटा उपलब्ध नहीं है लेकिन गैर-आधिकारिक अनुमानों के अनुसार लिंगायत वोटरों की संख्या प्रदेश की आबादी का करीब 14 से 18 फीसदी हिस्सा है तो वहीं वोक्कलिगा समुदाय के मतदाताओं का संख्या 11 से 16 फीसदी के करीब है. 2023 का विधानसभा चुनाव लगातार दूसरा ऐसा चुनाव है जब भाजपा ने मुस्लिम या ईसाई समुदाय से कोई भी प्रत्याशी नहीं उतारा है.

जातियों के अनुसार सभी पार्टियों के प्रत्याशी
जाति भाजपा कांग्रेसग् जेडीए
लिंगायत 68 46 43
वोक्कलिगा 42 42 54
अनुसूचित जाति 36 37 36
अन्य 23 22 14
अनुसूचित जनजाति* 17 18 14
सर्वाधिक पिछड़ी जातियां* 17 17 12
कुरुबा 7 15 11
मुस्लिम 0 15 22
ब्राह्मण 13 7 2
ईसाई / जैन** 1 4 2
कुल 224 223 210

*कर्नाटक में अनुसूचित जाति के लिए 36 और अनुसूचित जनजाति के लिए 15 सीटें आरक्षित हैं.

** भाजपा ने मुस्लिम या ईसाई समुदाय से कोई प्रत्याशी नहीं उतारा

क्षेत्रवार स्थिति

कर्नाटक में अगर हम क्षेत्रवार स्थिति को देखे तो उत्तरी कर्नाटक का बड़े हिस्से में लिंगायतों की मौजूदगी ज्यादा है तो वहीं बेंगलुरू और दक्षिणी कर्नाटक में वोक्कलिगा समुदाय का दबदबा है. इसके अलावा तटीय कर्नाटक में अन्य पिछड़ी जातियों की संख्या सबसे अधिक है.

3 नेताओं के आसरे कांग्रेस

वैसे तो कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी समेत तमाम नेताओं की फौज ने कर्नाटक में प्रचार किया, लेकिन पार्टी को सबसे ज्यादा उम्मीद तीन नेताओं से ही रही जिनमें खुद कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस के कर्नाटक ईकाई के प्रमुख डीके शिवकुमार और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया. कांग्रेस के ये तीन नेता जिस समुदाय से आते हैं उनकी प्रदेश की कुल जनसंख्या 38 फीसदी के करीब बैठती है. कांग्रेस कर्नाटक में राहुल गांधी की संसद सदस्यता चले जाने को भी भुनाने में लगी रही.

2022 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव के दो उम्मीदवारों में एक थे कर्नाटक से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे और दूसरों के केरल से आने वाले शशि थरूर. ये बात किसी से छिपी हुई नही है कि खड़गे लंबे से पार्टी की कमान संभाल रहे गांधी परिवार के करीबी थे, जिसका फायदा उनको चुनाव में भी देखने को मिला ओर खड़गे भारी मतों से चुनाव जीत गये. खड़गे ने कांग्रेस के अध्यक्ष होने के नाते अपने गृह राज्य में पार्टी को जीत दिलाने के लिए लगातार कर्नाटक में ही कैंपेन किया.

2014 में केंद्र की सत्ता जाने से पहले जब कांग्रेस को एक के बाद एक हार का सामना करना पड़ रहा था तब भी कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस ने सबको चौकाते हुए प्रदेश का विधानसभा चुनाव जीता था. 2023 में एक चीज कांग्रेस के पास वही है जो पार्टी के पास 2013 में थी और वो है प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार. सात बार के विधायक और कांग्रेस के संकटमोचक कहे जाने वाले डीके शिवकुमार कर्नाटक चुनाव में पार्टी की कमान संभाल रहे हैं. डीके शिवकुमार कर्नाटक की राजनीति के सबसे प्रभावशाली माने जाने वाले वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. 

कांग्रेस के पास पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया जैसे चेहरे भी हैं जो कर्नाटक की सियासत के सबसे प्रभावी चेहरे के तौर पर देखे जाते है. एचडी देवगौड़ा के साथ अपना सियासी सफर शुरू करने वाले सिद्धारमैया बाद में कांग्रेस में आये थे. कर्नाटक की राजनीति में शून्य से शिखर तक का सफर तय करने वाले सिद्धारमैया का नाम प्रदेश में पांच सालों तक मुख्यमंत्री रहने वालो की उस सूची में आता है जिसमें बहुत कम लोगों को जगह मिली है.

भाजपा को मोदी मैजिक से उम्मीद

अन्य राज्यों की तरह ही कर्नाटक में भी भाजपा एक बार फिर से पीएम नरेंद्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के आसरे ही चुनाव में उतरी. पीएम मोदी ने 7 मई तक अपने चुनाव प्रचार के पिछले सात दिनों में 18 जनसभाओं को संबोधित किया है. इसके साथ ही उन्होंनें 6 रोड शो भी किये. मोदी ने ज्यादातर राष्ट्रीय मुद्दों के आसरे ही कर्नाटक का चुनाव साधने की कोशिश की. इसका फायदा कितना होगा ये तो 13 मई को ही पता चलेगा.

इसके अलावा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने भी कई रैलियां एवं रोड-शो किये. वहीं भाजपा में मोदी के बाद दूसरे नंबर के नेता अमित शाह ने कर्नाटक में पिछले 9 दिन मे 16 रैलियां एवं 20 रोड शो किये. वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी 3 दिन कर्नाटक में प्रचार किया इस दौरान उन्होंने 10 रैलियों को संबोधित करने के साथ ही 3 रोड शो भी किये.

जनता दल सेकुलर (जदएस) निभा सकती है किंगमेकर की भुमिका

कर्नाटक की राजनीति में कई बार किंगमेकर की भुमिका निभा चूकी जनता दल सेकुलर (जदएस) को 2023 के चुनाव से एक बार फिर उम्मीद है कि वो राज्य में सरकार बनाने में अहम रोल अदा करेगी. वयोवृद्ध नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के साथ उनके बेटे एवं पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी पार्टी के चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाले हुए हैं.

Vikas Lohchab.

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